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अध्यात्म और दर्शन (आत्मा) १७६
५४२ अपनी आत्मा ही नरक की वैतरणी नदी तथा कूटशाल्मली वृक्ष है और अपनी आत्मा ही स्वर्ग की काम दुधाधेनु तथा नन्दन वन है।
५४३ आत्मा ही अपने सुख-दु ख का कर्ता तथा भोक्ता है अच्छे मार्ग पर चलने वाला आत्मा अपना मित्र है और बुरे मार्ग पर चलने वाला आत्मा अपना शत्रु है।
५४४ आप अपने आप अपना दमन कीजिए। क्योकि अपने से अपना दमन कठिन है। जो अपने से अपना दमन कर सकता है, वह दोनो लोको मे सुखी रहता है ।
५४५ आत्मा से ही युद्ध करो। वाह्य युद्ध से तुम्हे क्या प्राप्त होने वाला है ?
५४६ आत्मा को जीत कर सुख प्राप्त करो।
५४७ आत्मा को जीत लेने पर सब कुछ जीता हुआ ही है।