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________________ समभाव २६७ निस्पृह उपदेशक जिस प्रकार पुण्यवान को उपदेश देता है उसी प्रकार तुच्छ को भी उपदेश देता है और जिस प्रकार तुच्छ को उसी प्रकार पुण्यवान को भी, अर्थात् दोनो के प्रति समभाव रखता है। २६८ जो अपने धर्म से विपरीत रहने वाले लोगो के प्रति भी, तटस्थता रखता है, उद्विग्न नही होता है वह समस्त विश्व के विद्वानो मे अग्रणी है। २९६ सावक न जीने की आकाक्षा करे और न मरने की कामना करे । वह जीवन और मरण मे किसी प्रकार की आकाक्षा न रखता हुमा समभाव से रहे । साधक को अन्दर और बाहर की सभी बन्धन रूप गाठो से मुक्त होकर जीवन यात्रा पूर्ण करनी चाहिए । ३०१ शरीर और इन्द्रियो के क्लान्त होने पर भी मुनि अन्तर्मन मे समभाव रखे, इधर उधर गति और हलचल करता हुआ भी, साधक निंद्य नहीं है यदि वह अन्तरग मे अविचल है तो।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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