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________________ (६०) बेहोश नही बनाती है, ठीक इसी प्रकार कर्म-योग्य परमाणु जब आत्मा से सम्बन्धित हो जाते है, समय आने पर वे परमाणु स्वय हो कर्म-कर्ता को फल दे डालते है। कर्म परमाणुओ के फलोन्मुख होने पर ही मनुष्य अपने को सुखी और दुखी अनुभव करता है। ___ "कर्म स्वय अपना फल देते है" इस सत्य को एक उदाहरण से समझिए। कल्पना करो । एक मनुष्य भूल से पारा खा जाता है, उस से उस का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, वह रोगी बन जाता है। वह रोगी वैद्य से उस का उपचार कराता है, औषध ग्रहण करता है, और औषध के सेवन से उस का रोग दूर हो जाता है । अब कहिए । मनुष्य को रोगी बनाने वाला कौन है ? उत्तर स्पष्ट है, -पारे के परमाणु । तथा उसे स्वास्थ्य प्रदान करने वाला कौन है ? यह भी स्पष्ट है, औषध के परमाणु । इस तरह मनुष्य को रोगी बनाने वाले भी अशुभ परमाणु प्रमाणित होते है और उसे स्वस्थ वनाने वाले भी शुभ परमाणु ही हैं । यहा ईश्वर या किसी अन्य दैविक शक्ति का कोई हस्तक्षेप नही है । यहा तो मात्र परमाणुगो का ही प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । जैसे मनुष्य के रोग और उसके स्वास्थ्य का कारण परमाणुपु ज है, वैसे ही जीवन मे जो सुख और दुख की घडिया आती है, इन के पीछे भी शुभाशुभ कर्म-परमाणु ही कारण है । शुभाशुभ परमाणुनो को शुभाशुभ शक्तियो के कारण ही जीवन मे सुख दु.खो की सृष्टि होती है, जीवनगत सुख-दुखो का कारण ईश्वर या किसी अन्य दैवि अनिता को नही समझना चाहिए । परमाणुओं में
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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