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आदि उपलब्ध होते है। भूतकाल के शुभाशुभ कर्म के अनुसार शुभाशुभ वर्तमान की सृष्टि हुई है और वर्तमान जीवन का शुभाशुभ कर्म हो भावी-जीवन की शुभा-शुभ स्थितियो का आधार है । भावी जीवन का निर्माण मनुष्य के अपने हाथ मे रहता है। तू जैसा चाहे वैसे हो भविप्य की रचना कर सकता है। स्वर्ग और नरक तेरे हाथ में रहते है । सुख दु.ख का ससार हूँ स्वंय तैयार करता है। उस के लिए ईश्वर या किसी अन्य दैविक शक्ति को माध्यम बनाने की आवश्यकता नही
६ इस प्रकार भगवान महावीर ने मनुष्य के भाग्य को ईश्वर या देवों के हार ने से निकाल कर स्वयं मनुष्य के हाथ मे रखा और उसे ही उस का स्वामी बतलाया।
उत्तराध्ययन नूत्र अध्यय २०, गाथा २६ मे स्वयं भगवान महावार ने उक्त सत्य को दोहराया है। प्रभु वीर के अपने गन्द निम्नोक्त हैं
अप्ना नई व्यरगो, अप्पा मे कूडतामलो। अप्पा कामदुदा धेणू, अप्पा मे नन्दण वणं ।। अर्थात्-मात्मा हो नरक के वितरणी नदी है तथा कुटगाल्मलो वृक्ष है। अपनी आत्मा ही स्वर्ग को कामधेनु गौ तथा नन्दन वन है।
वैतरणी नदी और कूटनाल्मली वृक्ष नरक मे पाये जाते हैं। वैतरणी नदी का पानी पिले हुए गोगे के सनान होता है ! नारती अपनी जान बुझाने के लिए कहा जाता है, किन्तु उस मे पान को छूने ही कराह उठना है। गाल्मली वृक्ष के