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________________ कर्म-वाद भगवान महावीर का तीसरा सिद्धान्त कर्मवाद है। वाद सिद्धान्त को कहते हैं। जो वाद कर्मो को उत्पत्ति, स्थिति और उन के फल देने आदि की विविध विशेषताओ का वैज्ञानिक ढग से विवेचन करता है, वह कर्मवाद कहलाता है । कर्मवाद के सम्बन्ध मे भारत के जैनेतर सभी दार्शनिको ने कुछ-न-कुछ लिखा है, अपने-अपने ढग से कर्मवाद को ले कर सभी ने कुछ न कुछ कहा है। किन्तु कर्मवाद की निश्चित गहराई तक जितना भगवान महावीर उतरे है अन्य कोई दार्शनिक नही उतर सका है। जैन दर्शन जैसा कर्मों का सर्वागीण विवेचन जैनेतर दर्शन मे कही उपलब्ध नहीं होता। ____ कर्मो का अस्तित्व ससार एक रगमच है। यहा नाना प्रकार के पात्र हमारे सामने आते है। इन मे कोई अमीर है तो कोई गरीब, कोई सबल है तो कोई निर्बल, कोई विद्वान है तो कोई मूर्ख, कोई नीरोग शरीर वाला है तो कोई रोगो की शय्या पर सदा कराहता रहता है, किसी को सर्वत्र अभिनन्दन और स्वागत की ध्वनिया सुनने को मिलती है तो किसी पर दुतकार तथा तिरस्कार की वर्षा होती है, किसी के दर्शन के लिए जनमानस लालायित रहता है तो किसी को फूटी आख से भी कोई देखना पसद नहीं करता, कोई अन्न-कण को तरसता रहता है तो कोई अजीर्णता से व्याकुल है। इस तरह ससार के सभी पात्र नाना
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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