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(१९२) देश साम्यवाद का प्रचार और प्रसार करने की धुन मे है, कही पूजीवाद की दुहाई दी जा रही है । ख्याल किया जाता है कि इस उपाय से दु.खी समाज सुखी बन जायेगा किन्तु सत्यता तथा निर्लोभता किसी मे भी नही है। सभी अपने-अपने ढग से अपनी-अपनी तिजोरिया भरना चाहते है। और दूसरे देशो पर अपना अधिकार जमाने का या प्रभाव बढाने का स्वप्न ले रहे हैं। सब का एक ही नेता है और वह है-~~-परिग्रह । परिग्रह की उपशान्ति परिग्रह के पोषण से नही हो सकती।
आग मे ईन्धन डालकर उस को शान्त करने की बात सोचना जैसे अपने को धोखा देना होता है, वैसे ही परिग्रह की पूजा से शान्ति की स्थापना की कामना करना अपने को धोखा देना है । दुखो से और झझटो से बचने का एक ही उपाय है, और वह है- अपरिग्रहवाद की प्रतिष्ठा । यदि ससार अपरिग्रहवाद को अपना ले तो आज जितनी भी आर्थिक, विषमताए दृष्टिगोचर हो रही है, वे एक क्षण मे समाप्त हो सकती हैं । आज की समस्याओ को समाहित करने का सर्वोकष्ट साधन यदि है, तो वह अपरिग्रहवाद ही है । इस को छोड़ कर अन्य किसी साधन से तीन काल मे भी ससार मे शान्ति के दर्शन नहीं हो सकते।
एक समय था, जव मनुष्य को अपने खान-पान पहरान आदि की चिन्ता नही थी, उसके जीवन की सभी अवश्यकताए विना किसी कप्ट और क्लेश के पूरी हो जाती थी, इस का कारण केवल यही था कि उस समय के मनुप्य की आवश्यकताएं आज की भांति असीम नही थी ।थोडे में सव का निर्वाह हो जाता था, और जीवन के लिए आवश्यक सामग्री