________________
(१८८) कोई मर्यादा नहीं है। सेवा की भावना से तो गवत्यनुसार कितने भी पशु रखे जा सकते हैं।
९-कुप्यन्यथापरिमाण-घर गृहस्थी के फुटकल सामान का परिमाण करना । घर गृहस्थी के काम मे आने वाले जितने भी साधन है, उन सव की मर्यादा कर लेनी चाहिए। ममता जितनी कम होगी, उतनी ही जीवन मे गान्ति रह सकेगी। कहा भी है-जितनी सम्पत्ति, उतनी विपत्ति । घर मे जितना अधिक सामान पड़ा रहता है, उस मे से काम में तो थोड़ा ही आता है, शेप को तो केवल सार-सभाल ही करनी पड़ती है । अधिक सामान होने से स्थावर और बस सभी जीवो की हिसा होती रहती है । इस के अलावा, अधिक सामान उन लोगो को दे दिया जाए, जो लोग उस से वञ्चित हैं, और उसके विना जो कप्ट अनुभव कर रहे हैं, तो उन को शान्ति मिल सकती है। अतः आवश्यकता से अधिक वस्तुप्रो. का संग्रह करना किसी भी दृष्टि से हितावह नही है। ___अपरिग्रहवाद का वड़ा व्यापक विषय है । उक्त पक्तियो मे अपरिग्रहवाद की जो व्याख्या की गई है,वह बहुत सक्षिप्त है,और उस को जीवन मे ले पाने की पद्धति का जो निर्देश किया गया है, वह भी सूचनामात्र है। अपरिग्रह का सिद्धान्त तो इतना गंभीर और सूक्ष्म है कि कुछ कहते नही बनता। इस पर जितना भी लिखा जाए, कहा जाए उतना ही थोड़ा है। यहा' तो केवल उस की झाकी उपस्थित की गई है । विशेष जानने के अभिलाशी पाठको को स्वतत्ररूपेण जेनागमो का अध्ययन करना चाहिए। ___ अपरिग्रहवाद का सिद्धान्त गान्ति का अग्रदूत है । यह