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(१८६) पोषण होता है । यदि आभूषण बनवाने ही पड़े तो इन का परिमाण अवश्य कर लेना चाहिए। ' ५-धनयथापरिमाण-नकद रुपए पैसे का परिमाण(मर्यादा) करना । धन शब्द द्वारा पाई से लेकर रुपये तक और हीरा, माणिक, मोती, जवाहिरात आदि सब खनिज धन का ग्रहण हो जाता है। धन को मर्यादा वाध कर शेष धन का परित्याग कर देना चाहिए।
यहा पर प्रश्न हो सकता है कि एक व्यक्ति के पास जब सौ रुपया भी नहीं है तो यदि वह एक लाख की मर्यादा करले, और कहे कि इस से अधिक हो गया तो उस का परित्याग कर दूगा, तो इस त्याग से क्या प्रात्मोत्थान होने वाला है ? इस का समाधान करते हुए जैनाचार्य कहते है कि पुरुष का भाग्य वडा विचित्र होता है, उसे मनुष्य तो क्या देवता भी नहीं जान सकता । गाए और वकरीया चराने वाले ग्वाले भी राजा, महाराजा बन जाते है। जिस निर्धन ने एक लाख की मर्यादा की है, क्या पता है, उसका भाग्य चमक उठे, और वह लाखो का स्वामी वन जाए। यदि उस ने परिग्रह की मर्यादा कर रखी होगी तो वह धन की अधिक प्राप्ति के समय सतोष धारण करके अपनी मर्यादा मे ही रहेगा, उस से अधिक धन ग्रहण नहीं करेगा। वह और अधिक परिग्रह नही वढाएगा। तव ममत्व-जनित उस पार गे उस की आत्मा बच जाएगी । प्रत निर्धन अवस्था में भी मनुय को परिगह की मर्यादा अवश्य कर लेनी चाहिए।
६-धान्य-यापरिमाणमान्य अनाज को नाहते है । चावल, गेहू आदि ६४ प्राधान्य होता है । धान्य शब्द