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(१७९) भूभाग भी मै पाण्डवो को नहीं दे सकता। महाभारत का भयकर युद्ध दुर्योधन के ही स्वार्थप्रिय मानस का दुष्परिणाम था। अभिमन्यु जैसे अर्जुन के वीर पुत्र इसी की स्वार्थलालसा का शिकार बन गये थे। स्वार्थान्ध जीवन के विषादान्त वृत्तो का कहा तक वर्णन किया जाए ? भगवान महावीर इस सत्याको खव समझते थे, स्वार्थप्रियता तथा परिग्रहवृत्ति के दुष्परिणामो का उन्हे भलीभाति बोध था, इसीलिए उन्होने; ससीर कों अपरिग्रहवाद का पवित्र सन्देश दिया और मनुष्य को अपनी इच्छामो को परिमित और मर्यादित कर लेने के लिए जोरदार शब्दो मे प्रेरणा प्रदान की।
.:T ; : ___अपरिग्रहवाद कहता है कि सुखप्रिय तथा, सहृदय मानव को अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए अपने स्वार्थ-पर नियन्त्रण कर लेना चाहिए । कामनाओ के बह रहे असीम नद को सन्तोष के बाध से बाध कर ससीम बना देना चाहिए । सोने चादी की मर्यादा बाध लेनी चाहिए कि मैं अमुक धनराशि से अधिक धन अपने अधिकार मे नही रखूगा। यदि मर्यादासे अधिक धन हो गया तो उसे परोपकार आदि सत्कार्यों मे लगा डालूगा। ऐसा करने से मनुष्य के पास अनावश्यक धनसग्रह नही हो सकेगा और आवश्यकतानुसार धन उस के पास रहने से उसे कोई कष्ट भी नही होगा। साथ ही साथ वह वहुत सी व्यर्थ की हाय-हाय करने से भी बच जायगा और अपना जीवन सूख तथा सन्तोष के साथ व्यतीत कर सकेगा। यही जीवननिर्माण तथा जीवनकल्याण का सर्वोत्कृष्ट राजपथ है। इसी पथ पर चलकर अतीत मे ससार के अनेकानेक लोगो ने शान्तिलाभ प्राप्त किया है और वर्तमान में कर रहे है।