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(१५२) घड़ा भी वडा अनोखा है, जो कभी तो हाथी की चिंघाड मात्र से भर जाता है और कभी भूमण्डल के सभी प्राणियो को करुणक्रन्दन से भी नही भरने पाता। कभी तो ईश्वर नाई के बदले राजा के पैर दवाने के लिए भागा चला आता है और कभी हकीकत के रूप मे भक्त प्रभुचरणो मे अपने जीवन का बलिदान भी कर देता है तब भी उस के कानो पर जू नही रेगती तथा कभी तो द्रौपदी के अग को ढकने के लिए ईश्वर वस्त्रों की वर्षा कर देता है और अब (हिन्द और पाकिस्तान के विभाजनकाल मे) जबकि हजारो नही, लाखो द्रौपदियो को सरे-वाज़ार नग्न किया गया और उन्हे निर्दयता-पूर्वक विडम्वित करके नचाया गया, तथापि भगवान को दया नही आई। कितनी विचित्र लीला है उस ईश्वर की ? सच तो यह है कि ईश्वर को अवतारवाद के साथ जोड कर उस का उपहास किया गया है । ___ जव मुक्त आत्मा कर्मो से सर्वथा उन्मुक्त होता है, ऐसी दशा मे वह पुन कर्मों के बन्धन मे आ जाता है, यह विल्कुल समझ से परे की बात है । ईश्वर को सर्वथा निष्कर्म मान लेने पर उसका अवतार कैसे सभव हो सकता है ? निष्कर्म आत्मा नवमास अन्धेर कोठडी मे उलटा लटके, यह विल्कुल असभव
तत्त्वार्थसूत्र के दशम अध्याय मे आचार्यवर उमास्वाति ने समस्त कर्मों के आत्यन्तिक नाश का नाम मोक्ष बतलाया है।
मोक्षप्राप्त आत्मा कर्मो से सर्वथा रहित होती है, उस के साथ कर्मो का अश भी शेष नही रहने पाता है। निप्कर्म आत्मा को किसी भी प्रकार का कोई कर्मवन्ध नही हो सकता।
* कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्ष ।
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