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कारण बनते हैं।
ईश्वर अवतार नही लेता हैवैदिकदर्शन में विश्वास पाया जाता है कि जब-जब धर्म की हानि होती है, अधर्म की वृद्धि होती है तब-तब भगवान अवतार धारण करता है और वह साधु पुरुषो का उद्धार करता है तथा पापियो का विनाश । किन्तु जैनदर्शन का ऐसा विश्वास नही है । जैनदर्शन कहता है कि जो परमात्मा सर्वज्ञ है, सर्वदर्शी है, अनन्त शक्तिसम्पन्न है, जिस के स्मरण से हृदय शान्ति के सरोवर मे डूब जाता है, उस परमात्मा को कभी कछुआ वना देना, कभी मछली और कभी सूअर वना देना, यह सर्वथा अनुचित है, असगत है । ईश्वर क्या हुआ ? एक अच्छा खासा बहुरुपिया बन गया, जिसे न जाने कितने स्वाग धारण करने पडते हैं ? किसी अवतारवादी से पूछा जाए कि इस समय ससार मे इतना अनर्थ हो रहा है, सर्वत्र पापाचार का दानव नग्न नृत्य कर रहा है, धर्म, कर्म सब वदनाम हो रहे हैं, ऐसी स्थिति मे परमात्मा मौन क्यो बैठा है ? इस भीषण और भयावह समय मे भी वह अवतार धारण क्यो नहीं करता तब वह एक पेटेण्ट (Potent) घडा-घडाया उत्तर देता है। वह कहता है कि अभी पाप का घडा भरा नही है ! खूब रही,
* यदा यदा हि धर्मस्य, ग्लानिभर्वति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य, तदात्मान सृजाम्यहम् ॥ परित्राणाय साधूना, विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसस्थापनार्थाय, सभवामि युगे-युगे ॥
(गीता अ० ४-७, ८)