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(१३९) दी। इस से वह न तो कोई दूर की वस्तु साफ देख सकता है, और न छोटे-छोटे अक्षरो वाली कोई पुस्तक ही पढ सकता है। ईश्वर का दिया हुआ यह दण्ड अमिट होना चाहिए था, परन्तु उस व्यक्ति ने डाक्टर से ऐनक ले ली और पाखो पर लगा कर ईश्वर की दी हुई सजा को निष्फल कर दिया। वह ऐनक लगा कर दूर की चीज साफ देख लेता है और बारीक से बारीक अक्षर भी पढ लेता है। इसी भाति ईश्वर की भेजी हुई प्लेग, हैजा आदि बीमारियो को डाक्टर लोग, सेवासमितिया अपने अनथक परिश्रम से बहुत कम कर देती है। इन उदाहरणो से यह स्पष्ट हो जाता है कि ईश्वर का दिया हुआ दण्ड अमिट नही रहने पाता है। लोगो द्वारा उसे समाप्त या कम कर दिया जाता है । इस के अलावा, कर्मो का फल भुगताने के लिए भूकम्प भेजते समय ईश्वर को यह भी ख्याल नही रहने पाता कि जहा मेरी आराधना और उपासना होती है, ऐसे मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा श्रादि धर्म-स्थानो को नष्ट करके अपने उपासको की सम्पत्ति को नष्ट न होने दू। सर्वदर्शी भगवान अपने स्थानो की यह दुरवस्था क्यो करता है ?
३-ससार जानता है कि चोर, डाकू आदि आततायी लोगो की सहायता करना एक भयकर पाप है। ऐसा करना लोकविरुद्ध होने के साथ-साथ धर्मविरुद्ध भी है। यदि लोग चोर, डाक
आदि दुष्ट लोगो की स्वार्थवश सहायता करते हैं तो वे शासनव्यवस्था के अनुसार दण्डित किए जाते है ? ऐसी दशा मे जो ईश्वर को कर्मफलप्रदाता मानते है और यह समझते है कि किसी का जो दुख मिलता है, वह उस के अपने कर्मो का फल है और वह फल भी ईश्वर का दिया हुआ है। फिर भी यदि वे