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(११९) * नैन छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैन दहति पावकः । न चैन क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुत ॥
अर्थात्-हे अर्जुन | इस आत्मा को शस्त्र आदि काट नही सकते, आग जला नही सकती, जल आर्द्र (गीला) नही कर सकता और वायु इस आत्मा को सुखा नही सकती। ____ गीताकार आत्मा को अच्छेद्य, अदाह्य, अक्लेद्य, अशोष्य, नित्य, अचल, सदा स्थायी और सनातन मानते है। इस से स्पष्ट है कि गीताकार के मत मे आत्मा किसी की कृति या रचना नही है। इस लिए यह कोई सिद्धान्त नही है कि प्रत्येक पदार्थ के पीछे कोई न कोई निर्माता अवश्य रहता है । यह सत्य है कि कुछ एक ऐसी वस्तुए है जिन को बनाया गया है । जैसे-घट, पट आदि । तथा जीव, अजीव आदि कुछ एक ऐसी वस्तुए भी है जो अनादि है, किसी ने उनका निर्माण नही किया है। यदि किसी भी पदार्थ को अनादि न माना जाए और यही मान लिया जाए कि सब पदार्थ किसी न किसी निर्माता को साथ लेकर चल रहे है। जहा-जहा पदार्थत्व है, वहा-वहा कर्तृत्व रहता है । अर्थात् कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं है, जो बनाया न गया हो तो प्रश्न उपस्थित होता है कि ईश्वर भी एक पदार्थ है । उक्त सिद्धान्त को मान कर यदि हम चलते हैं, तो यह भी मानना होगा कि ईश्वर का भी कोई बनाने वाला होगा । जहा-जहा पदार्थत्व है, वहा-वहा कर्तृत्व है, इस सिद्धान्त से ईश्वर को बचाया नही जा सकता । जब घट-पट आदि सामान्य से पदार्थ भी किसी निर्माता की अपेक्षा रखते है, तो इतने
*अध्याय २, ग्लोक २३ ।