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(११८) ले लीजिए। इस को भी किसी ने तो बनाया है । घडा भी बिना बिना बनाए नही बनता । गली, बाजार, सडके, पुल आदि सभी वस्तुए वनाने से बनती है। जब ये सव वस्तुए-विना बनाए नही बनी है, तो इतना बडा विशाल जगत विना वनाए कैसे बन गया? यह भी तो किसी ने बनाया ही होगा ? यह भी किसी रचयिता की रचना होगी और वह रचयिता ईश्वर है। ईश्वर ने ही इस विशाल जगत का निर्माण किया है। ___ उपराउपरी देखने से उक्त युक्ति सत्य प्रतीत होती है, किन्तु जब गभीरता से विचार किया जाता है तो इस युक्ति मे कोई तथ्य दृष्टिगोचर नहीं होता। क्योकि यह कोई सिद्धान्त नही है कि प्रत्येक पदार्थ किसी की रचना है। आत्मा को ही ले लीजिए । आत्मा एक पदार्थ है। जैनदर्शन और वैदिकदर्शन दोनो इस को नित्य मानते है, अज बतलाते है। दोनो दर्शनो का विश्वास है कि आत्मतत्त्व का किसी ने निर्माण नही किया है। गीता तो यहा तक कहती हैन जायते म्रियते वा कदाचित,
नाय भूत्वा भविता वा न भूय. । । *अजो नित्यः शाश्वतोऽय पुराणो,
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥ अर्थात यह आत्मा किसी काल मे न जन्म लेता है और न मरता है । यह आत्मा हो करके न पुन होने वाला है। यह अजन्मा है, नित्य है, शाश्वत है और पुरातन है । शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नही होता है।
* अध्याय २ श्लोक २० ।
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