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(११५) मनुस्मृति का उक्त कथन कहा तक सत्य है ? जरा गभीरता से विचार कीजिए। सर्वप्रथम तो इस का ऋग्वेद यजुर्वेद की श्रुति से तथा गोपथ-ब्राह्मण आदि से विरोध पडता है, क्योकि ऋग्वेद मे अण्डे का वर्णन नही है, यजुर्वेद ओर गोपथ-ब्राह्मण मे ब्रह्मा की उत्पत्ति कमल से वतलाई है। एक स्थान पर ब्रह्मा को अज (जन्म न लेने वाला) कहा है। इस प्रकार परस्पर विरोध सुस्पष्ट है। ब्रह्मा जी एक वर्ष तक अण्डे मे रहे, यह भी सर्वथा असगत है । क्योकि मनुप्य के ३६० वर्ष देवता के एक वर्ष के समान होते है । देवता के १२००० वर्पो का एक देव-युग होता है। देवता के २००० युगो का ब्रह्मा का एक अहोरात्र बनता है। ३६० दिनो का फिर एक वर्ष होता है। इतने लम्बे काल तक ब्रह्मा जी का अण्डे मे रहने का क्या कारण था ? बाहिर निकलने को उन्हें मार्ग नहीं मिला, या कोई अन्य कारण था ? इस प्रकार अनेको प्रश्न उपस्थित होते है, जिन का कोई सन्तोपजनक समाधान नहीं है।
आर्यसमाज के मान्य धर्मनन्य सत्यार्थप्रयाग में लिखा है कि जगत की उत्पत्ति के समय ईश्वर ने ३२-१३ वर्षों के युवक जोडे (स्त्री और पुरुप) निब्बत के पहाट पर उतार दिए थे, उन जोडो से फिर मानव-जगत का विस्तार हुमा । पाप ही सोनिए, इम मे कहा तक गन्यता है। माता-पिता के नांग के विना मनप्य केसे रत्पन्न हो गया ? मगम में माहिर को