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मनचला बच्चा बन गया। जैसे बच्चे का खिलौने के बिना दिल नही लगता, ऐसे ही ईश्वर को भी मानो विनोद के लिए ससार का खिलौना चाहिए था। कितना अन्धविश्वास है यह । विश्वास रखिए, यह मान्यता निरी मिथ्या है, इस मे कोई सत्यता नही है। निराकार भगवान के सम्बन्ध मे उस के दिल लगाने की चिन्ता करना, यह भगवान का अपमान करना है। इस से भगवान की प्रतिष्ठा नही हो सकती। मैं तो कहूगा कि इस से सर्वज्ञ और सर्वदर्शी भगवान की सर्वज्ञता और सर्वदर्शिता का उपहास होता है, ईश्वर के ईश्वरत्व की यह सरासर अवहेलना है।
"ईश्वर ने दिल लगाने के लिए इस ससार को बनाया है" इस बात को यदि सत्य मान लिया जाए तो जिस ससार से ईश्वर अपना दिल बहलाता है, वह ससार कैसा है ? यह भी समझ लीजिए । आज का ससार दुखो का सजीव चित्र दृष्टिगोचर हो रहा है। कही मानव हस रहा है, कही वह रो रहा है, कही पशुयो को छुरियो का भोजन बनाया जा रहा है, कही मनुष्य जीवन को आग लगा कर उस की भस्म बनाई जा रही है, कही गाय, भैस, बकरा, बकरी, मुर्गा, भेड आदि प्राणियो के जीवन का अन्त किया जा रहा है, इन के मासो को आमोदप्रमोद के साथ खाया जा रहा है, कही वधगृह मे चीत्कार हो रहे है, कहो बन्दो-गृहो मे कोडो की ध्वनिए गूज रही हैं, कही नारी का वैधव्य बहुत बुरी तरह अपमानित एव तिरस्कृत किया जा रहा है, कही पतिव्रतामो के पातिव्रत्य धर्म नष्ट हो रहे हैं, उन्हे नग्न करके नचाया जा रहा है, उन पर बलात्कार हो रहे है, उन के बच्चो को नेजो पर उछाला जा रहा है, कही