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हो । दाता हो कर भिखारी मत बनो । ठाकुर वन कर पुजारी क्यो बनने चले हो ? हीरो की खान पर बैठ कर अपने मे दरिद्रता की कल्पना क्यो करते हो ? सभलो, चेतो, अपनी ओर देखो । तव तुम्हे धीरे-धीरे अपने मे ही ईश्वरत्व के दर्शन हो जाएगे ।
ईश्वर जगन्निर्माता नही है
वैदिक दर्शन का विश्वास हैं कि इस जगत का निर्माण ईश्वर ने किया है । जिस प्रकार रेलवे, एरोप्लेन, मोटर, तार, टेलीफोन, वायरलैस, अणुवम आदि वस्तुएं बुद्धिमान मनुष्य की रचना है, उसी प्रकार यह जगत भी ईश्वर ने बनाया है । कहा भी है
सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्त्या, वृक्षान् सरीसृपशून खगदंशमत्स्यान् । तैस्तैरतुष्टहृदयः पुरुपं विधाय, ब्रह्मावबोधधिषण मुदमाप देवः ॥
अर्थात्-ईश्वर ने अपनी शक्ति से वृक्ष, सरीसृप, पशुसमूह, पक्षी - दंश और मत्स्य आदि नानाविध शरीरो का निर्माण किया है । इतना करने पर भी ईश्वर के हृदय मे सन्तोष नही हुआ, तब उस ने मनुष्यदेह का निर्माण किया । मनुष्य भी ऐसा, जिस मे ब्रह्म के स्वरूप का वोध प्राप्त करने की बुद्धि है, क्षमता है । मनुष्य की रचना से वह हर्ष - विभोर हो उठा । वैदिक दर्शन को इस जगत्कर्तृ त्व मान्यता से जैन दर्शन सहमत नही है । जैनदर्शन इस जगत को अनादि मानता है । उस के श्रभिमतानुसार इस संसार को कभी बनाया नही गया है ।