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(१०१) है, और उसका विनाश भी होता है। इस लिए. इस सयाग को सादि-सान्त कहते है । इन मे से मोक्ष को सादि-अनन्त कहा गया है । यह इसी लिए कहा गया है कि एक व्यक्ति की अपेक्षा से मोक्ष अर्थात् ईश्वरत्व या परमात्मत्व अनादि नही है, सादिसान्त है। - वैदिकदर्शन ने ईश्वर को व्यक्ति को दृष्टि से जो अनादि बतलाया है, वह किसी भी युक्ति से प्रमाणित नहीं' होने पाता है। और न इस मान्यता मे कोई तथ्य ही प्रतीत होता है। तथापि उसने ईश्वर को जो अनादि माना है, इसके पीछे एक ही बात मालूम पडती है। वह बात यह है कि उस ने ईश्वर को ससार का निर्माता, भाग्य विधाता आदि प्रमाणित करना है । जगत का निर्माण तथा कर्मफल का प्रदान ईश्वर तभी कर सकता है, यदि उसे अनादि माना जाए। इसीलिए वैदिकदर्शन ने उसे अनादि स्वीकार किया है । किन्तु ईश्वर जगत का निर्माता भी सिद्ध नही होने पाता। क्योकि यदि ईश्वर को जगत का निर्माता और भाग्य का विधाता आदि मान लिया जाए तो उसका ईश्वरत्व हो लडखडा जाता हैं। इस सम्बन्ध मे इसी प्रकरण मे आगे बतलाया जा रहा है । पाठक उस स्थल को देखने का कष्ट करे ।
ईश्वर सर्वव्यापक नही है-- वैदिकदर्शन का विश्वास है कि ईश्वर सर्वव्यापक है । सर्वव्यापक का अर्थ है, सब जगह रहने वाला । विश्व का कोई भी ऐसा प्रदेश नही है, जहा ईश्वर की अवस्थिति न हो । वह सर्वत्र विराजमान है, इस लिए वह सर्वव्यापक है ।