________________
(९७) करेंगी, इसलिए जैन दर्शन कहता है कि ईश्वर एक नही है, अनेक है, बल्कि अनन्त है।
ईश्वर एक है अथवा ईश्वर अनेक हैं ? इस प्रश्न का स्याद्वाद या अनेकान्त-वाद की भाषा मे यदि उत्तर देने लगे तो कहना होगा कि ईश्वर एक भी है और वे अनेक भी है । गुणो की दृष्टि से ईश्वर एक है । क्योकि सभी इश्वरो मे ईश्वरत्व बराबर रहता है, सभी सच्चिदानद है, सभी मे ज्ञान और आनद की अनन्तता खेल रही है। कोई किसी से हीन या अधिक नहीं है। जिस प्रकार गुणो की समानता की दृष्टि से स्थानागसूत्र मे भगवान महावीर ने "एगे आया" यह कहकर आत्मा को एक बतलाया है । इसी प्रकार गुणों को समानता की दृष्टि से सभी ईश्वर व्यक्तियो पर 'ईश्वर' यह एक शब्द लागू होता है । कोई, ईश्वर छोटा है, कोई बड़ा है, ऐसा व्यवहार वहा नही चलता है। इसलिए जैन दर्शन कहता है कि ईश्वर एक है.। किन्तु व्यक्तियो की अपेक्षा से वे अनेक हैं, या अनन्त है । जो जोव अहिंसा, सयम, तप की अध्यात्म त्रिवेणी मे गोते लगा कर कर्ममल से सर्वथा विशुद्ध हो गए है या हो रहे है, जैन दृष्टि से वे सव ईश्वर है, इसलिए ईश्वर एक न होकर अनेक हैं, उनकी संख्या का कभी अन्त नही आ सकता । वैदिक दर्शन व्यक्ति की दृष्टि से ईश्वर को एक मानता है। उस के यहा किसी भी आत्मा मे ईश्वरत्व प्राप्त करने की योग्यता ही नही है, जब कि जन दर्शन प्रत्येक भव्य आत्मा मे ईश्वरत्व प्राप्त करने की योग्यता को स्वीकार करता है और यह मानता है कि अतीत काल मे अनन्त आत्माओ ने ईश्वर पद पाया है, और अनागत मे अनन्त आत्माए इस पद को प्राप्त करेगी। इस