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________________ खाते रहते थे, इसीलिये एक दिन इन्होने दुखी होकर प्रभु से कहा"आप के साथ रहने से तो मुझे मार खानी पड़ती है प्रत मैं आपके साथ नही रहूगा ।" यह कह कर गोशालक प्रभु से अलग हो गये और राजगृह की ओर प्रस्थान कर गए । परमावधिज्ञान और छठा चातुर्मास - ग्रव भगवान महावीर विहरण करते हुए वैशाली होते हुए गालिशीर्ष गांव मे आए और यहां के एक उद्यान मे ध्यान लगाकर खडे हो गए । माघ महीने की भयंकर सर्दी थी, बर्फानी-तूफानी हवा शरीर कम्पा रही थी, तथापि भगवान मस्ती से ग्रात्म-चिन्तन मे तन्मय हो रहे थे । अचानक ही मूसलाधार वर्षा होने लगी । कडकडाती सर्दी मे बर्फ से भी गीतल पानी शरीर को सुन्न करता जा रहा था । परन्तु भगवान ध्यानस्थित थे, शरीर मे दूर ग्रात्म-ग्रवस्थित थे । यही पर उन्हे परमावधि ज्ञान प्राप्त हुआ इन्द्रिय और मन की सहायता के विना समूचे लोक के रूपी द्रव्यों का मर्यादा -सहित साक्षात्कार कराने वाला ज्ञान परमावधिज्ञान होता है । । · शालिशीर्ष ग्राम से भगवान महावीर चातुर्मास के बाद विहार करके भद्रिका नगरी पधारे। भागल पुर से आठ मील दूर दक्षिण में भदरिया ग्राम है, वही पर पहले भद्रिका नगरी थी। इसी नगरी मे प्रभु ने छठा चातुर्मास व्यतीत किया । वह समूचा चातुर्मास उपवास तपस्या मे ही च्यतीत हुआ । इस चातुर्मासिक व्रत का पारणा नगरी के बाहिर जाकर किया गया । गोशालक जो पहले प्रभु से अलग हो गए थे, पुनः इसी शालिशीर्ष ग्राम मे प्रभु के चरणो मे आ गए। सातवां प्राठवां चातुर्मास - दीर्घ तपस्वी भगवान महावीर ने सातवां चातुर्मास आलम्बिया नगरी मे और प्राठवा चातुर्मास राजगृह नगर मे सम्पन्न किया । ये १ शास्त्रकारो का विश्वास है कि भगवान महावीर को ये कप्ट कटपूतना नामक किसी व्यन्तरी ने पूर्वजन्मों का बदला लेने के लिये दिये थे । पञ्च-कल्याणक ] { ६७
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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