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१६.४०
१ व्या. वा श्री क्रान्तिमुनि जी म प्रास्ताविक
पृ० नों २ प्रो० मुलखराज जैन एम ए च्यवन-कल्याण
१-१८ नयसार के रूप मे । परीचि के रूप मे . कौशिक के रूप मे। त्रिपृष्ठ वासुदेव के ' रूप मे। प्रियमिन्न के रूप में । नन्दन के
रूप मे। ३. श्री तिलकघर शास्त्री जन्म-कल्याणक
पथ की प्राचीनता । महावीर की आवश्यकता । वैशाली का सौभान्य जागा । जन्म कल्याणक का समय। माता की धन्यत्ता पिता की सिद्धार्थता। वीर की वीरता प्रत्यक्ष हो उठी। देवत्व ने मानवता के चरण पकडे । अनेकान्त का जन्म । पूर्व जन्माजित विद्या । तानी उलझी सुलझने के लिये। ज्वालामुखी उफनने लगा। मुक्ति मार्ग खुलने की प्रतीक्षा मे । चिता शांत, चित्त प्रशान्त । ममत्व लुटने लगा। भौतिक्ता आध्यात्मिकता के चरणो मे झुक गई। विराट की ओर प्रस्थान । दुख और हर्ष
का मिलन । ४. श्री ज्ञान मुनि जी महाराज दीक्षा-पल्याणक
४१.८० चमुप्टि लोच क्या है ? अद्वितीय महाबोर। मन पर्यवज्ञान की उपलब्धि ।
। चार ।