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________________ Ram TAMATA PLANEONEYMORA.७ जन्म-कल्याराक ० २ ० हम पिछले अध्याय में भगवान महावीर के च्यवन अर्थात् प्राणत नामक देवलोक से धरती पर आगमन की घटना का विस्तृत परिचय प्राप्त कर चुके हैं, अब हम प्रस्तुत अध्याय मे भगवान महावीर के जन्म कल्याणक एव छद्मस्थ जीवन अर्थात् दीक्षा ग्रहण से पूर्व के जीवन पर प्रकाश डालेगे। पथ की प्राचीनता जैन सस्कृति की यह दृढ धारणा है कि प्रत्येक युग मे सत्रस्त मानवता की रक्षा के लिये तीर्थङ्कर जन्म लिया करते हैं। वर्तमान अवसपिणी युग के प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव थे, जिनका नामोल्लेख वेदो एव पुराणो मे भी प्राप्त होता है। कुछ विद्वान तो यहा तक स्वीकार करते है कि जैन-सस्कृति की सत्ता आर्यों के प्रागमन से भी पूर्व यहा पर विद्यमान थी। जैसे कि डा० रामधारी सिंह दिनकर लिखते है' - "यह मानना युक्ति-युक्त है कि श्रमण १- "एव सर्वावसपिण्युत्सर्पिणीषु जिनं नमा."। -मभिधान-चिन्तामणि २- सस्कृति के चार अध्याय । पञ्चकल्याणक ]. ( १९
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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