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से हमारे लिये उनके कुछ पूर्व जन्मो का उल्लेख करना ही उपयुक्त होगा
नयसार के रूप में भगवान महावीर का जीवन अपनी साधनामयी जीवन-परम्परा मे पहले-पहल पृथ्वी-प्रतिष्ठ नामक नगर मे 'नयसार' के नाम से हमारे सामने आता है । इसी जन्म मे नयसार ने वह तीर्यङ्कर बनने के लिये अपना पहला कदम उठाया था जो आत्म-विकास की पूर्णता को प्राप्त कर स्वय तरने की महाशक्ति के साथ-साथ लोक को तारने की महाशक्ति से सम्पन्न महापुरुष होता है।
एक दिन नयसार वन मे लकडिया काटने के लिये गया। वहा वह जब भोजन करने के लिये बैठा ही था उसी समय कोई अतिथि मार्ग भूलकर भटकते हुए उधर आ निकला। नयसार ने अत्यन्त भक्ति-पूर्वक उसे आहारादि दिया । विशुद्ध भाव से दिया गया आहारादि तथा श्रद्धा-सहित किया गया सत्कार ही नयसार के लिये 'महावीर' बनने की नीव बन गया।
मरीचि के रूप मे - नयसार के रूप मे प्रपनी आयु पूर्ण कर भगवान महावीर का जीव सुवर्म देवलोक मे उत्पन्न हुमा । वहा से लौटने पर भरत चक्रवर्ती के पुत्र मरीचि के रूप मे उसने जन्म लिया।
एक बार अपने पुत्र मरीचि को लेकर महाराज भरत भगवान ऋषभदेव का उपदेश सुनने गए। चक्रवर्ती भरत ने भगवान ऋषभदेव से प्रश्न किया कि
"भगवन् । क्या यहा कोई ऐसा प्राणी भी है जो इसी चौबीसी (चौवीस तीर्थङ्करो) मे तीर्थङ्कर पदवी को प्राप्त करेगा ?"
भगवान ऋषभदेव ने कहा कि "भरत | तुम्हारा यह पुत्र मरीचि ही वासुदेव और चक्रवर्ती बनने के पश्चात् चौवीसवे तीर्थङ्कर महावीर के रूप मे प्रकट होगा।"
पञ्चकल्याणक }