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प्राषाढ-सुमिस-षष्ठ्या हस्तोत्तरमध्यमाश्रिते शशिनि । प्रायात: स्वर्गसुख भुक्त्वा पुष्पोत्तराधीशः ।। सिद्धार्थ-नृपति-तनयो भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे ।
देव्या प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान्सप्रदर्य विभुः ॥ जब माप अच्युत स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान से स्वर्ग-सुखो को भोगकर च्युत हुए और देवी प्रियकारिणी की कुक्षि मे प्रविष्ट हुए तब प्राषाढ शुक्ल पण्ठी का दिन था, चन्द्रमा उत्तराषाढा नक्षत्र में था, भारतवर्ष के विदेह देश मे कुण्डपुर नगर, का शासक सिद्धार्थ या, यह प्रियकारिणी (त्रिशला) उनकी पटरानी थी। प्रापके गर्भ मे आने से पहले उसने मोलह स्वप्न देखे थे।
श्वेताम्बर-शास्त्र च्यवन-समय में इस्तोंत्तरा-उतराफाल्गुनी नक्षत्र मानते हैं।
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प्रो. मुलरव राज जैन एम.ए.