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प्रकट कर विश्व के लिये कल्याणकारिणी बन गई। उनका निर्वाण भी मङ्गलकारी बना, क्योकि जिस भूमि भाग से कोई प्रात्मा मोक्षगामी वनती है उस स्थान से मोक्ष-पथ की पगडण्डिया प्रारम्भ हो जाती हैं। इसी दृष्टि से निर्वाण-स्थल को तीर्य कहा जाता है।
इस प्रकार उनका निर्वाण भी विश्व कल्याण का साधक बना।
जैन-धर्म दिवाकर पजाब प्रवर्तक श्री फूल कन्द जो श्रमण महाराज की दिव्य प्रेरणा से पाच व्यक्तियों ने भगवान महावीर के समग्र जीवन को उपस्थित किया है, सक्षिप्त सरल रोचक और सारभित भाषा मे । विशेपता यह है कि इसमे प्रवर्तक श्री जी ने कितनी मूझ-बूझ से काम लिया है भगवान महावीर के च्यवन-कल्याणक और जन्म-कल्याणक का गृहस्थ जीवन से सम्बन्ध होने के कारण इन गृहस्य लेखको से ही उपस्थित करवाया गया है और दीक्षा, केवलनान और निर्वाण का सम्बन्ध मुनि जीवन से होने के नाते उसे मुनीश्वरो की समर्थ लेखनी द्वारा ही प्रस्तुत करवाया है । अन्त मे भगवान महावीर की वाणी को उन्होने स्वय उपस्थित कर पुस्तक को पूर्णता प्रदान की है।
श्री तिलकघर शास्त्री अपनी सम्पादन-कुशल लेखनी के लिये जैन-समाज मे अपना विशिष्ट स्थान बनाते जा रहे है। इस पुस्तक के सम्पादन मे भी उनका प्रतिभा-कौशल निखर कर सामने आया है।
भगवान महावीर की पच्चीसवी निर्वाण शताब्दी पर इस ग्रन्थ का प्रकाशन विश्व के लिये 'कल्याणक' ही वने-विश्व मङ्गल की पावन भावना इसके द्वारा फलीभूत हो, मैं इन्ही झब्दो के साथ पुस्तक के प्रचार और प्रसार की कामना करता हूं। १०-३-७५ लुधियाना