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________________ गराधर-परिचय परिशिष्ट मध्यमा पावा के समवसरण मे जिन ग्यारह विद्वानो ने भगवान के पास अपनी गकाग्रो का समाधान करके दीक्षा ली थी, वे विद्वान् भगवान महावीर के प्रथम शिष्य कहलाए । अपनी असाधारण विद्वत्ता, अनुशासनकुशलता तथा प्राचारदक्षता के कारण ये भगवान के गणधर बने। गणधर भगवान के गण (सब) के स्तम्भ होते है । तीर्थङ्करो की अर्थरूप वाणी को सूत्ररूप मे ग्रथित करनेवाले कुगल शब्द-शिल्पी होते हैं । भगवान महावीर के ग्यारह गणधर थे। जिनका परिचय निम्न है - १ इन्द्रभूति (गौतम) इन्द्रभूति गौतम भगवान महावीर के प्रधान शिष्य थे । मगध की राजधानी राजगृह के पास गोबर गाव उनकी जन्मभूमि थी । जो आज नालन्दा का ही एक भाग माना जाता है। उनके पिता का नाम वमुभूति और माता का नाम पृथ्वी था। ___ यह कहना कठिन है कि इन्द्रभूति गौतम का गोत्र क्या था, वे किस ऋषि के वश से सम्बद्ध थे? किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि गीतम गोत्र के महान गौरव के अनुरूप ही उनका व्यक्तित्व विराट् व प्रभावशाली था। दूर-दूर तक उनको विद्वत्ता को धाक थी । पाच सौ छात्र उनके पास अध्ययन के लिये रहते थे। उनके व्यापक प्रभाव से प्रभावित होकर ही सोमिलार्य ने महायन का नेतृत्व उनके हायो मे सौपा था। पचास वर्ष की आयु मे आपने पाच सौ छात्रो के साथ प्रव्रज्या ग्रहण की, तीस वर्ष तक छद्मस्थ' और बारह वर्ष जीवन्मुक्त केवली • रहे। गुणशील चैत्य में मासिक अनशन करके बानवे वर्ष की आयु मे उन्होने निर्वाण को प्राप्त किया। १ साधनावस्था पञ्च-कल्याणक] [ १६७
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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