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________________ ६ नाणागमो-मुच्चु मुहस्स प्रथि। १४२ ७ नो निन्हवेज्ज वीरियं । ११५३ मृत्यु के मुख मे पड़ा हुआ व्यक्ति मृत्यु से बच जाए यह कैसे सम्भव हो सकता है ? अपनी शक्ति को छिपाना नही चाहिए, बल्कि अपनी गति से काम लेना चाहिए। न अपना तिरस्कार करो और न ही दूसरों का। ८ नो अत्ताणं प्रासाएज्जा नो परं आसाएज्जा १९६५ ह गाम वा अदुवा रणे, नेव गामे धर्म गाव मे भी हो सकता नेव रणे धम्ममायाणह। है और वन मे भी, क्योकि वस्तुत ११ धर्म न गाव मे है, न वन मे, धर्म तो आत्मा मे है। १० समियाए धम्म पारिएहि पवेइए। आर्य महापुरुषो ने सबसे समान ११ व्यवहार को ही धर्म कहा है। ११ लोभपत्ते लोभी समावइज्जा मोस वयणाए। २।३।१५ लोभी व्यक्ति लोभ का अवसर आते ही झूठ बोलने पर उतारू हो जाता है। सूत्र-कृतांग १२ तमामो ते तमं जन्ति । वे मूर्ख व्यक्ति अन्धकार की मंदा प्रारम्भ निस्सिया। ओर ही जाते हैं जो दूसरो को १।१।१।१४ पीडित करते हैं। १३ समुपाय मजाणता कह नायति संवर। १1१1३।१० जो दुख की उत्पत्ति के मूल कारण को नही समझता वह उसे दूर करने के कारण को कैसे जान सकता है ? [ महावीर-वचनामृत १५६)
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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