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श्री महावीर-वचनामृत
आचारांग सूत्र
१ उवहेएण बहिया य लोग से
सव्व लोगम्मि जे केइ विष्णू ।
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२ नो उच्चावर्य मणं नियंछिज्जा।
२१३१ ३ पुरिसा। प्रत्ताणमेव अभिणिगिज्झ एव दुक्खा पमुच्चसि ।
जो व्यक्ति अन्य धर्मावलम्बियो के प्रति भी तटस्थ रहता है अन्य धर्मो की मान्यताग्रो से उद्विग्न नही होता वही विद्वानो मे श्रेष्ठ माना जाता है। सकट की घडियो मे मन को डावाडोल मत होने दो।। मानव । अपने आप पर स्वय नियन्त्रण करो। अपने आप पर नियन्त्रण करने पर ही तू दुखो से छुटकारा पा सकता है।
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४ सम्वनो पमत्तरस भय
सवयो अपमत्तस्स नत्यिभय।
जो असावधान है उसे सब पोर से भय रहता है सावधान के लिये कही से भी भय नही रहता।
१।३।४
५ जे एगं नामे से बहुँ नामे।
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जो अपने आपको झुका लेता है, उसके सामने सारी दुनिया झुक जाती है।
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पञ्च-कल्याणक]