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________________ गणधीर अचल भ्राता और गणधर मेतार्य गुणशील चैत्य मे ही मासिक अनगन करके मोक्षगामी बने । भगवान वर्षावास के लिये नालन्दा मे पधारे और इस वर्षावास ने नालन्दा को पावन किया। तीर्थकर जीवन . उनतालीसवां चातुर्मास ___ वर्षावास की पूर्णता पर प्रभु के पावन चरण विदेह की ओर बढे। मिथिला पहुंचने पर महाराज जित शत्रु ने आपका अभिनन्दन वन्दन किया । मणिभद्र चैत्य मे प्रतिदिन प्रवचन होने लगे। महाराज जितशत्रु महारानी धारणी के साथ प्रतिदिन प्रवचन सुनने के लिये आया करते थे। यहा पर इन्द्रभूति गौतम ने भगवान् महावीर से खगोल सम्बन्धी अनेक प्रश्न किये जिनका उत्तर भगवान् ने प्रत्यक्ष दर्शी की तरह ही दिया जो चन्द्र-प्रज्ञप्ति और सूर्य-प्रज्ञप्ति जैसे ग्रन्थो मे विद्यमान है। वर्षावास मिथिला मे रहा। तीर्थ दूर जीवन : चालीसवां वर्ष वर्षावास के अनन्तर प्रभु विदेह मे ही विचरण करते रहे और इस वर्ष की चातुर्मासिक साधना भी उन्होने पुन. मिथिला मे ही की । तीर्थङ्कर जीवन : इकतालीसवां चातुर्मास मिथिला मे भगवान महावीर पुन. मगध की भूमि पर पधारे और और राजगृह के गुणगील चैत्य मे ही पहुंच गए। वहां पर भी गौतम जी ने प्रमु मे अनेक विपयो का ज्ञान प्राप्त किया। इसी वर्ष मे अग्नि भृति एव वायुभूमि नामक भगवान के गणधरो ने गुणगील चैत्य मे ही अनशन करके मोक्ष-पद पाया। ___ चातुर्मास के अनन्तर भी भगवान वहीं ठहरे रहे । इसी बीच उनके अन्य गणधर, अव्यक्त स्वामी मण्डिक, स्वामी, मौर्य पुत्र और अकम्पित स्वामी ने भी मासिक अनशन पूर्वक सिद्धत्व प्राप्त किया। पञ्च-कल्याणक.] ८. [ १३५
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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