________________
उसको पोर प्राकृष्ट होने लगता है। आज का हिमात्मक वातावरण भगवान् महावीर के सिद्धान्तो की ओर आकृष्ट हो रहा है मैं समझता हू उसका यही कारण है।
अहिंसा 'करुणा' सिखाती है और करुणा ही गान्त जीवन को आवार-भूमि है। करुणा देना सिखाती है, प्यार सिग्वाती है, सहानुभूति के गीत गाती है। ___ महापुरुप का लक्षण करते हुए उपनिषद् मे कहा गया है 'करुणाकेलि.' महापुरुप वह है जिसके लिये करुणा जोवन का खेल है। वेल मे स्वार्य नहीं होता, केवल विनोद होता है, उसमे लगाव नहीं होता, केवल सामान्य प्रवृत्ति होती है, महापुरुप करुगा भी करते है तो वह भी किसी लगाव स्वार्थ या प्रयोजन के लिये नही, कणा तो उनका खेल होता है। भगवान महावीर जीवन भर करुणा केलि में ही लीन रहे। वे सगमक जैसे दुष्ट की यातनाओं को भी सहते रहे करुणा का खेल समझ कर । कोई यातनाए दे तभी तो उस पर करुणा की जाय ।
छे मास के बाद यातनाएं देते हुए थक कर संगमक जव करुणावतार प्रभु मे क्षमा माग कर चलने लगा तो करुणा-पुरुप को आखो मे आसू पा गए । सगमक चकित हो गया, बोला 'प्राज यांमू ?' प्रभु की करुणा ने कहा-'तुम्हारी भावी यातनायो का स्मरण कर मेरी करुणा रो उठो है ।" यदि ऐसी करुणा की किरण मानवता को प्राप्त हो जाय तो विश्व-शान्ति के मानवीय स्वप्न शीघ्र ही साकार हो उठे इसमे सन्देह नही। उनका जोवन किसी पर भार नहीं था :
एक बार सुना किसी से कि 'महावीर ने भिक्षुओ की फौज तैयार कर दी थी।" मैं मुस्कराया पर कुछ बोला नहीं, क्योकि मुझे वए
और बन्दर को एक पुरानी कहानी याद आ गई थी। बन्दर को शिक्षा देकर वए ने अपना घोसला ही उजड़वा लिया था। पर सोचता हूं कि क्या 'महावीर भिक्षुमो एव भिक्षुणियो की फौज तैयार करते थे, बात विचारणीय है। -
[,चौदह }