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हुआ हो। तो जिस प्रकार उपनिषद्-मार्ग की निवृत्ति-परायणता की उपेक्षा की गई है, इसी प्रकार महावीर के निवृत्ति-मार्ग की भी उपेक्षा करदी गई है।
___ यह सब कुछ होते हुए भी वेदो में और श्रीमद्भागवत पुराण मे जन-सस्कृति के आदि पुरुप भगवान् ऋषभदेव जी का और अरिष्ट नेमि जो का उल्लेख तो हुया ही है, क्योंकि सत्य की पूर्ण उपेक्षा नहीं हो सकती।
काव्य-ग्रन्यो मे भी भगवान् महावीर का कुछ जैन मुनीश्वरो को छोडकर अन्य कवियो ने वर्णन नहीं किया, इसका कारण भी यही है कि महा-काव्य के लिये उस धीरोदात्त नायक की आवश्यकता होती है जो बड़े-बड़े युद्ध करता हो, प्रेम की सीमानो के पार पहुंच जाता हो, जिसका जीवन धृ गार, वीर, रौद्र, आदि रसो से परि-पूर्ण घटनायो से भरा हो, भगवान् महावीर ने न तो कोई युद्ध लड़ा, न कही किसी से प्रेम किया, न कही अपना रौद्र रूप प्रकट किया, अत: उनका प्रशान्त महासागर सा गम्भीर नीवन महाकाव्य के लिये उपयोगी सिद्ध न हो सका।
संसार फिर लोट रहा है :
विश्व-चक्र घूम रहा है अपनी अवाध गति से, अत. एक युग का वातावरण दूसरे युग मे पुनः लोट आता है। महावीर कालीन समस्याए नए-नए रूपो मे पुनः लौट आई हैं। तब यज्ञ के नाम पर होनेवाली हिंसा आज मास-भक्षण को प्रवृत्ति के रूप में सामने आई है, तब नारो घर की चार दीवारी में कैद हो कर साधना से विमुख हो गई थी, अब वह फैगन एत्र वासना के जाल में घिर कर साधनाको भूल रही है, तब तयाकथित उच्च वर्ग गरीवो से घृणा करता था, अब पूजोवादो गरीब से वृणा करते हैं, बाह्य आडम्बरों को ही तब धर्म माना जाता था, वाह्याडम्बर ही आज भी धर्म कहे जाने लगे - हैं, अत: अव अपने सिद्धान्त के रूप मे अमर भगवान् महावीर की पुनः 'श्रावश्यकता है।
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