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________________ यज्ञ-शाला में जनता का एक सागर ही उमड रहा था। अपने-अपने अभीष्ट की सिद्धि मे सब लोग आशावान होकर बैठे थे। सहसा उन्हो ने देखा कि लोग महासेन उद्यान की ओर बड़ी उत्सुकता से चले जा रहे है। यज-मण्डप के हजारो लोग भी उठ-उठ कर चलने लगे । देखते ही देखते यज्ञ-मण्डप खाली हो गया। भगवान महावीर के समवसरण मे जनता का एक महासागर ठाठे मारने लगा। भगवान तीर्थ अर्थात् सघ की स्थापना कही भी कर सकते थे, किन्तु वे मध्यमा पावा मे अपने साथ एक महान उद्देश्य लेकर ही उपस्थित हुए थे । मध्यमा-पावा उस समय वैदिक धर्म का एक बहुत वडा केन्द्र था। ग्यारह दिग्गज विद्वानो के नेतृत्व मे उस समय एक महान् यजीय अनुष्ठान भी हो रहा था। उस यज्ञ की छटा निहारने के लिये यज्ञ-मण्डप के पाश्चल मे दूर-दूर से लोग आकर आसन जमाए बैठे थे। ऐसे दुर्लभ अवसर को महावीर अपने हाथ से नही जाने देना चाहते थे। वे जान बूझ कर मध्यमा पावा की ओर बढे। महावीर वेदो के और वैदिक-जगत के ही नहीं, बल्कि उस समय धर्म के नाम पर प्रचलित घोर हिंसा के प्रवल विरोधी थे। यज्ञो के नाम पर भारत के पावन प्राङ्गण मे हिंसा का ताण्डव नृत्य हो रहा था । महावीर भारत के पवित्र ललाट से हिंसा के इस कलक को धो देना चाहते थे। धर्म के नाम पर चल रही गलत रूढियो तथा पाखण्डो का अन्त कर देने के लिये वे कटिवद्ध थे। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्होने सव से पहले मध्यमा-पावा को ही चुना, क्योकि उनके केवलज्ञान के दर्पण मे मध्यमा नगरी में प्राप्त होनेवाली सफलता पहले से ही झलक रही थी। उन्होने देख लिया था कि सोमिल के यज्ञ. मण्डप पर विजय पाना-हिंसा पर अहिंसा की एक महान विजय होगी। इस से भारत देश में अहिंसा के प्रचार के द्वार खुल जायेंगे। महावीर कोई विजय की भावना लेकर मध्यमा में नहीं पाए थे, वे ख्याति के भी भूखे न थे। वे पाए थे जन-मानस को तथा जन-नेतायो को प्रात्मा के विराट सत्य का परिवोध देने के लिये। ___सोमिल की यज्ञ-शाला एक-दम सूनी हो गई। पण्डित वर्ग आश्चर्य म डूब गया। भगवान महावीर के तेज और प्रभाव को देख कर वे चित्र लिखित से रह गये। सोमिल के यज्ञ की तो वे अनुपम पञ्च-कल्याणक] [१
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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