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१. स्वयं ही स्वर्ग का यह,
आत्मा निर्माण करता है। अपने ही फर्म से यह,
नरक का मेहमान बनता है ।।
२. कभी विवेक से यह,
सुख की दुनिया वसाता है । कभी अज्ञान में आकर,
स्वयं प्रलय मचाता है ।।
३. कभी अपने से हो यह,
शत्रु - सा व्यवहार करता है । कभी सुमित्र बन कर,
स्वयं का उपकार करता है ।।
४. सत्य अपना मोत है,
और असत् शत्रु है बड़ा । * महावीर ने यह सुवचन,
प्रिय शिष्य गौतम से कहा ।।