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७१. गाया
धम्मे हरए बम्भे सन्तितित्थे
अणाविले अत्तपसन्नलेसे । जहि सिणाओ विमलो विसुद्धो सुसीइभूओ पजहामि दोसं ॥
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उत्त० अ० १२ गा० ४६
अर्य
धर्म रूपी जलाशय है । ब्रह्मचर्य शान्ति तीर्थ है । कालुष्य रहित आत्मा प्रसन्न लेश्या है। ऐसे जलाशय में स्नान करने से आत्मा निर्मल और विशुद्ध हो जाता है। इस तरह में अत्यन्त शीतल हो कर कपाय आदि दोषों का परित्याग करता है।