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६६. गाया
अर्थ
१३२
खेत्तं वत्थं हिरण्णं च
पुत्तदारं च बन्धवा ।
चइत्ता णं इमं देहं गन्तव्वमवसस्स मे ।।
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उत्त० अ० १९ गा० १७
प्रत्येक मनुष्य को यह चिन्तन अवश्य करना चाहिये कि मुझे एक दिन भूमि, घर, सोना-चाँदी, पुत्र, स्त्री, सगे-सम्वन्धी यहाँ तक कि इस शरीर तक को भी छोड़कर इस दुनिया से अवश्य जाना पड़ेगा ।