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६३. गाथा
कुसग्गे जह ओबिंदुए
___ थोदं चिठ्ठइ लंबमाणए। एवं मणुयाण जीवियं
समयं गोयम! मा पमायए ।
उत्त० अ० १० गा०२
अर्थ
जैसे कुशाग्र भाग पर लटकते हए ओस के विन्दु अल्प जीवी ही होते हैं। ऐसे यह मानव जीवन भी क्षणनंगुर है। अतः गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।