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१. तरुवर के हरे भरे पत्ते,
क्या अदभुत शोभा पाते हैं ! वे फाल चक्र से बन्धे हुए,
पोले हो फर गिर जाते हैं ।।
२. आयुष्य कर्म की शाखा से,
यह जीवन भी गिर जाता है । अनन्त काल के बाद फहीं,
फिर मानव भव में साता है ।
३
इस सुअवसर फो पा फरके,
न व्यर्थ इसे वरवाद करो। अमर साधना के साधक !
हे गौतम ! मत प्रमाद फरो !
प्रसाद
४. प्रमाद हो तो मूल है,
इस जीव के मद का का! * महादोर ने यह सुचन.
प्रिय शिव गौतम से पहा ।।