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६२. गाथा
दुमपत्तए पंडुयए जहा
निवडइ राइगणाण अच्चए। एवं मणुयाण जीवियं
समयं गोयस! मा पलायए ।
उत्त० अ० १० गा० १
अर्थ
दिन व रात्रि के अनुक्रम से जैसे वृक्ष के पत्ते पीले हो कर झड़ जाते हैं । ऐसे ही यह मनुष्य जन्म एक दिन आयप्य की शाखा से गिर जाता है। इसलिए हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद करना उचित नहीं।