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2, जो ओसरण नम से गिरे,
वे कुशा संक में ठहर गये । जव लगा रवि का ताप उन्हें,
वे सिहर उठे और विखर गये ।।
२
यह नरवर जीवन मानव का भी,
पल भर में मिट जाता है। अनन्त काल के बाद वहीं,
फिर मानव भव में आता है ।।
३. इस दुर्लम जीवन को पा पार
नएं इसे बरवाद प.ते। मात्म - शान्ति के साधकः,
है गौतम ! मत प्रमाद एते ।।
.. प्रमाद चा : विपद पार,
म, निद्रा विपदा ।
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