________________
१२१
१. इस जीवन का घातफ शत्रु
फ.प्ट नहीं इतना देता । दुराचार से अनुरक्त नर,
है जितना दुख बढ़ा लेता ।।
२. इस जीवन का अन्त समक्ष लो ,
एक जन्म की हानि है । पर दुप्टात्मा का जीवन तो,
जन्म-मरण को खानि है ।।
३. दयाहीन नर पाप फर्म से,
यदि दाज न जाएगा । मृत्यु-नस में पड़ा हला यह,
मिर धुन धुन पडताएगा ।।
४. दुराचार का उमर लोप में,
*
मादोर ने पर गुपयन,
कि गौतम से पहा ]