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६०. गाथा
न तं अरी कंठछित्ता करेइ ___जं से करे अप्पणिया दुरप्पा । से नाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते
पच्छाणुतावेण दयाविहूणो ॥
उत्त० अ० २० गा० ४८
अर्थ
दुराचार में अनुरक्त प्राणी जितना अनिष्ट करता है उतना अहित तो गला काटने वाला शत्रु भी नहीं करता । ऐसा निर्दयी मनुष्य मृत्यु के आने पर अवश्य अपने दुष्कृत को समझ कर पश्चाताप करेगा।