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यदि न मिले जो गुण में हो,
ऊँचा चढ़ा
ज्ञान में और चरित
आगे बढ़ा
४
हुआ ।
में,
२. अपने समान गुण का भी,
साथी जो न
संयम सुपय का वह पथिक, इफला हो फिर चले "1
हुआ ।
३. दूर रह कर पाप से,
सनभाव मे
पर भूलकर भी नोच को, संगति यह न परे ॥
महाव्ह
मिले |
विचरे ।
असंयमी ऐ नंग हे..
तुम दूर हो रहा सदा ।
पचन,
प्रिय दिव्य नीतम मे