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१. जो साधक अपने जीवन में,
नित घोर तपस्या करता है । जो क्षमा, सरलता संयम के,
उत्तम-पथ पर पग घरता है ।।
२
जो जीवन में पर्य - बल से
हर एफ परिसह महता है । नित समता रस में लोन रहे,
न उफ तफा म पाहता है।
३. पर न मटपे. मय-सागर में,
गर गलि उससे मुलमा । * माचोर ने पर गुपचन,
धि frre कम में पता ॥