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५७. गाया
तवोगुणपहाणस्स
उज्जुमइ खंति संजमरयस्स । परीसहे जिणन्तस्त
सुलहा सुगई तारिसगस्स ॥
दश० अ० ४ गा० २७
अर्थ
जो साधक तपगण में प्रधान है-अर्थात् घोर तपस्या करता है। जिसका हृदय सरल है, जो क्षमा
और इन्द्रिय-संयम में सदा लीन रहता है । जो जीवन में आए हुए प्रत्येक कष्ट को समभाव पूर्वक सहन करता है। ऐसे साधक के लिए सुगति-अर्थात् मोक्ष अति मुलभ है।