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५४. गाथा
जरा जाव न पीडेइ
वाही जाव न वड्ढई। जाविदिया न हायंति . ताव धस्मं समायरे ॥
दश० अ० ८ गा० ३६
अर्थ
जब तक बुढ़ापा नहीं आता। रोग जब तक बढ़ कर जीवन को घेर नहीं लेते और इन्द्रियों की शक्ति जब तक क्षीण नहीं हो जाती, तब तक धर्म का आचरण कर लेना चाहिए-अर्थात् मरणासन्न होने पर कुछ भी सुकृत नहीं होगा।