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१०५ १. ऊचं, अधः और मयं लोक,
यह लोकत्रय है पुरुषाकार । अनन्त, अनादि और शाश्वत,
चौदह राजू का विस्तार ।।
२. जितने भी हैं जोव फर्म संग,
इसी लोक में रहते हैं । कभी न हिसा फरे किसी को,
धर्म सूत्र सब कहते हैं ।।
३. वर से निवृत्त होना.
दुख का अवसान है। इस लोक में परलोक में,
इफ शान्ति हो निर्वाण है ।।
१. न परे अपहरण जग में.
जीप . प्रिय प्रान पा। ★ महाबोर में यह मुदचन,
प्रिय मिप्य गौसम से कहा ॥