________________
.१०४
५२. गाया
उड्ढं अहे य तिरियं
जे केइ तसथावरा । सव्वत्थ विरई विज्जा संति निव्वाणमाहियं ॥
सू० ध्रु० १ अ० ११ गा० ११
अर्थ
ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्यग् लोक इन तीन लोकों में जितने भी त्रस और स्थावर जीव हैं। उन के अतिपात से निवृत्त हो जाना चाहिये। वैर की उपशान्ति को ही निर्वाण कहा गया है।