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५०. गाथा तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा
विवज्जणा बालजणस्स दूरा। सज्झायएगंत निसेवणा य
सुत्तत्थ संचितणया धिई य॥
उत्त० अ० ३२ गा० ३
अर्थ
गुरु और वृद्ध जनों की सेवा, अज्ञानी लोगों की संगति का परित्याग, धर्म शास्त्रों का स्वाध्याय, एकान्त-स्थान में वास, सूत्र तथा उसका अर्थ चिन्तनअर्थात् आत्म-चिन्तन और धैर्य-यानी प्रतिकूल स्थिति में समभाव रखना, यही वस्तुतः मोक्ष-अर्थात् शान्ति का मार्ग है।