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१. जव आयु की शाखा से,
यह जीवन पुष्प झरता है । न कोई विश्व का विज्ञान,
उसे फिर जोड़ सकता है।
२. तेरे उन्मत्त यौवन को,
बुढ़ापा जब दवायेगा । तुझं इस फर्म फल से,
फोन फिर आकर बचायेगा ।
३
हे प्रमाद के राही ! तू,
जीपन - ज्ञान पंसे पायेगा?। हिसा, असंयम, पाप से,
तू प्राण फंसे पायेगा ।
४. धर्म का मार्ग पकड,
और छोट मागं पाप का । * महादोर ने यह सुपचन,
प्रिय मिर गौतम से पहा ॥