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४९. गाथा असंखयं जीविय मा पमायए ___ जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं विजाणाहि जणे पमत्ते किण्णु विहिंसा अजया गहिन्ति ।।
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उत्त० अ० ४ गा० १
अर्थ
जीवन का सूत्र एक वार टूट जाने पर फिर जड़ता नहीं। बुढ़ापा आने पर कोई रक्षक नहीं होगा। जो पापी हैं, हिंसा में रत हैं और संयम से होन हैं, वे अन्त में किस की शरण लेगे?